नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक ऐसी बहस देखने को मिली जिसने अदालत से लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों तक हलचल मचा दी। दिल्ली पुलिस ने साफ शब्दों में कहा कि उमर खालिद शरजील इमाम गुलफिशा फातिमा मीना हैदर और अन्य दिल्ली दंगे आरोपियों को जमानत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि ये लोग साधारण आरोपी नहीं बल्कि शिक्षित वर्ग के वे लोग हैं जो अपनी बुद्धि और शिक्षा का इस्तेमाल खतरनाक दिशा में कर रहे हैं। पुलिस ने आरोप लगाया कि जब पढ़े लिखे लोग उग्रवाद की राह पकड़ते हैं तो वे किसी भी सामान्य अपराधी से ज्यादा बड़ा खतरा बन जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। दिल्ली पुलिस की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने अदालत को बताया कि हाल के दिनों में पढ़े लिखे युवाओं के उग्रवादी संगठनों से जुड़ने का नया पैटर्न सामने आया है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं से शिक्षा हासिल करने वाले कुछ लोग बाद में देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं जिससे उनका खतरा और बढ़ जाता है। पुलिस का यह बयान अदालत में मौजूद सभी लोगों को चौंकाने वाला था।
पुलिस ने अदालत को हरियाणा की अल फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल का उदाहरण भी दिया। इस मॉड्यूल का हाल ही में खुलासा हुआ था जिसमें डॉक्टरों से लेकर इंजीनियरों तक कई उच्च शिक्षित लोग शामिल पाए गए। जांच एजेंसियों ने एक डॉक्टर के पास बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की थी जिससे आसानी से आईईडी बनाई जा सकती थी। इसके अगले ही दिन डॉक्टर उमर नबी ने लाल किले के पास कार में विस्फोट किया था जिसमें चौदह लोग मारे गए। इस घटना के बाद कई डॉक्टरों की गिरफ्तारी हुई। पुलिस ने इसे प्रमाण के तौर पर पेश किया कि शिक्षित लोग भी खतरनाक नेटवर्क का हिस्सा बन सकते हैं इसलिए किसी तरह की ढील देना समाज के लिए जोखिम भरा है।
सुनवाई में शरजील इमाम के भाषणों की वीडियो क्लिप्स भी अदालत के सामने रखी गईं। इनमें शरजील को यह कहते हुए दिखाया गया कि पूरे देश में चक्का जाम करना होगा दिल्ली का दूध पानी बंद करना होगा और असम को भारत से अलग करने के लिए चिकन नेक क्षेत्र को ब्लॉक किया जा सकता है। दिल्ली पुलिस ने कहा कि इमाम के भाषण केवल विरोध नहीं बल्कि जनता को भड़काकर हिंसा फैलाने की सुनियोजित कोशिश थे। पुलिस के अनुसार शरजील ने अपने भाषणों में न्यायपालिका पर भरोसा न करने की सलाह दी और मुसलमानों को उकसा कर उग्र आंदोलन की दिशा में ले जाने की कोशिश की।
दिल्ली पुलिस ने अदालत को यह भी बताया कि नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का विरोध असली मकसद छुपाने की रणनीति था। एएसजी राजू ने कहा कि ये प्रदर्शन कोई सामान्य आंदोलन नहीं था बल्कि सत्ता परिवर्तन की कोशिश और देश की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की योजना थी। उन्होंने आरोप लगाया कि सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन इसलिए तेज किए गए क्योंकि उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आने वाले थे जिसका फायदा उठाकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने भारत की छवि खराब करना था। पुलिस का दावा था कि पूरी रणनीति का लक्ष्य यह दिखाना था कि देश में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है ताकि भारत की छवि दुनिया भर में धूमिल हो।
वहीं शरजील इमाम के वकील सिद्धार्थ दवे ने पुलिस के आरोपों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अदालत को गुमराह करने की कोशिश हो रही है क्योंकि लंबे भाषणों के केवल कुछ सेकंड के क्लिप्स दिखाकर उन्हें संदर्भ से बाहर पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषण का सम्पूर्ण संदर्भ सुने बिना उस पर निष्कर्ष निकालना न्यायसंगत नहीं है।
अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और मामले में आगे की सुनवाई की तारीख तय की। लेकिन इतना स्पष्ट है कि दिल्ली पुलिस की यह दलील कि बुद्धिजीवी जब उग्रवाद की राह पकड़ते हैं तो वे ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं आने वाले समय में कानूनी और राजनीतिक हलकों में गंभीर बहस का मुद्दा बनेगी।
