नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि अदालत को न्यायपालिका की आलोचना से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन किसी पर व्यापक आरोप नहीं लगाए जा सकते। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप शर्मा द्वारा पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जजों पर लगाए गए आरोपों को लेकर दी।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “आपने कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं, लेकिन आप किसी पर भी व्यापक आरोप नहीं लगा सकते। हमें न्यायपालिका की आलोचना से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यह आलोचना उचित और संयमित तरीके से होनी चाहिए।” इसके साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आलोचना का तरीका और शब्दावली संयमित और विचारशील होनी चाहिए, ताकि न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस न पहुंचे।
इस दौरान वकील ने पीठ को यह जानकारी दी कि उच्च न्यायालय ने शर्मा से बिना शर्त माफी स्वीकार करने के बाद अवमानना का आरोप हटा दिया है और इसके साथ ही शर्मा को पौधारोपण करने का निर्देश भी दिया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चंडीगढ़ को हरियाली की सख्त आवश्यकता है, और यह अच्छा है कि उच्च न्यायालय ने इस दिशा में ऐसा आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी उच्च न्यायालय के आदेश को लेकर विचार किया था, जिसमें शर्मा ने 15 सितंबर 2025 को बिना शर्त माफी मांगने का वचन दिया था। अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने उदारता दिखाते हुए शर्मा को अवमानना की कार्यवाही से मुक्त कर दिया है। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा द्वारा लगाए गए आरोपों के खिलाफ दायर याचिका का निस्तारण भी कर दिया।
इससे पहले, वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी थी कि शर्मा को उनके परिवार के सदस्यों ने उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामे के जरिए जो वचन दिया था, उस वचन का उल्लंघन नहीं किया गया है। इसके साथ ही, कामत ने यह भी कहा कि शर्मा ने 2023 से 2025 के बीच किए गए ईमेल भेजने की गलती का पछतावा व्यक्त किया है और अब वह भविष्य में ऐसी कोई गलती नहीं दोहराएंगे।
अंततः, शीर्ष अदालत ने इस मामले को समाप्त करते हुए याचिकाकर्ता से यह सुनिश्चित करने को कहा कि भविष्य में कोई भी विवादास्पद ईमेल या सार्वजनिक बयान नहीं दिया जाएगा।
