नई दिल्ली । भारत के न्यायिक इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। जस्टिस सूर्यकांत ने देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश CJI के रूप में शपथ ली और जस्टिस बी.आर. गवई की जगह सुप्रीम कोर्ट की बागडोर अपने हाथों में ले ली। करीब 15 महीनों तक वे देश की सर्वोच्च न्यायपालिका का नेतृत्व करेंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई और इस महत्वपूर्ण मौके पर सात देशों के मुख्य न्यायाधीश भी मौजूद रहे-जो उनके कद और प्रतिष्ठा को और बड़ा साबित करता है।
हरियाणा के हिसार में 10 फरवरी 1962 को जन्मे जस्टिस सूर्यकांत का सफर साधारण परिवार से देश की सबसे ऊंची कानूनी कुर्सी तक पहुंचने वाली प्रेरक कहानी है। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से उन्होंने लॉ में मास्टर डिग्री फर्स्ट क्लास फर्स्ट के साथ हासिल की। एक छोटे शहर के प्रैक्टिशनर से शुरुआत करके वे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अपनी मजबूत पहचान बना चुके थे। बाद में वे 5 अक्टूबर 2018 को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए।
सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाई। उनके फैसले न सिर्फ सुर्खियों में रहे बल्कि भारत के संवैधानिक ढांचे को दिशा देने वाले साबित हुए। नीचे उनके पांच सबसे बड़े और प्रभावशाली निर्णय दिए जा रहे हैं
1. अनुच्छेद 370 -कश्मीर के भविष्य को तय करने वाला फैसला
11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के केंद्र सरकार के निर्णय को वैध ठहराया। जस्टिस सूर्यकांत इस ऐतिहासिक पीठ का हिस्सा थे। इस फैसले ने दशकों पुराने संवैधानिक विवाद को खत्म करते हुए भारत के संघीय ढांचे को नई व्याख्या दी।
2. राजद्रोह कानून 124A -स्वतंत्रता की रक्षा करने वाला आदेश
ब्रिटिशकालीन राजद्रोह कानून पर रोक लगाने वाले आदेश ने देशभर में नई बहस छेड़ दी थी। जस्टिस सूर्यकांत उस बेंच में थे जिसने साफ कहा कि जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा नहीं करती, 124A के तहत नई FIR दर्ज न की जाए। यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा में सबसे बड़ी राहत माना गया।
3. पेगासस मामला – नागरिक स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा
पेगासस स्पाइवेयर विवाद में जस्टिस सूर्यकांत के शब्द देशभर में गूंजे-राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राज्य को फ्री पास नहीं दिया जा सकता।इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र साइबर विशेषज्ञ समिति गठित की। इस फैसले से सरकार की जवाबदेही और नागरिक निजता दोनों को मजबूती मिली।
4. बिहार वोटर लिस्ट SIR -पारदर्शिता का बड़ा आदेश
बिहार की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से लगभग 65 लाख नाम हटाने का मामला जब अदालत पहुंचा, तो जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग को स्पष्ट निर्देश दिया कि हटाए गए सभी नामों का पूरा विवरण जनता के सामने रखा जाए। यह आदेश चुनावी पारदर्शिता और मताधिकार की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
5. गवर्नर और राष्ट्रपति की शक्तियाँ – संवैधानिक सीमाओं की स्पष्टता
20 नवंबर 2025 को अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय पीठ ने महत्वपूर्ण राय दी जिसमें जस्टिस सूर्यकांत की प्रमुख भूमिका थी। अदालत ने कहा कि न्यायपालिका राष्ट्रपति या राज्यपाल को बिलों पर निर्णय लेने की समय-सीमा तय नहीं कर सकती लेकिन लंबी निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकती है। यह फैसला तमिलनाडु में राज्यपाल के विधेयकों पर देरी से जुड़ी बहस के बाद आया।
जस्टिस सूर्यकांत के ये फैसले बताते हैं कि वे न केवल कानून जानते हैं, बल्कि न्याय को संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप बनाए रखने की क्षमता रखते हैं। CJI बनने के बाद उनसे उम्मीद है कि आने वाले समय में वे भारतीय न्यायपालिका को और अधिक मजबूत और जवाबदेह बनाएंगे।
